क्रिकेट / लोढ़ा पैनल के सचिव बोले- अगर बीसीसीआई ने संविधान में बदलाव किया तो ये सुप्रीम कोर्ट का अपमान होगा

नई दिल्ली. भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड (बीसीसीआई) लोढ़ा कमेटी द्वारा बनाए गए संविधान में जरूरी बदलाव करने की तैयारी में है। इस पर लोढ़ा कमेटी के सचिव गोपाल शंकरनारायणन ने नाराजगी जताई है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर किए गए सुधारों में बदलाव की बोर्ड की योजना सर्वोच्च अदालत के फैसले का मजाक उड़ाने जैसा होगा।


शंकरनारायणन का मानना है कि इस मामले में अभी भी सुप्रीम कोर्ट की भूमिका अहम है। बोर्ड को सही कदम उठाने चाहिए नहीं तो बीसीसीआई के प्रशासनिक ढांचे में सुधार की उसकी कोशिश बेकार चली जाएगी। उन्होंने एक क्रिकेट वेबसाइट से कहा कि अगर बीसीसीआई को ऐसा करने दिया जाता है और इसे कोर्ट में चुनौती नहीं दी जाती या इसका संज्ञान नहीं लिया जाता है तो सुप्रीम कोर्ट और उसके द्वारा नियुक्त की गई कमेटी का अपमान होगा।


'संशोधन से जरूरी बदलावों का अस्तित्व खत्म हो जाएगा'
संशोधित संविधान में बदलाव का प्रस्ताव शनिवार को सामने आया जब बीसीसीआई के नए सचिव जय शाह ने एक दिसंबर को मुंबई में होने वाली एजीएम का एजेंडा तैयार किया। सबसे अहम संशोधनों में पदाधिकारियों के लिए आराम की अवधि (कूलिंग ऑफ पीरियड) के नियमों में बदलाव करना, अयोग्यता से जुड़े मानदंडों को आसान करना और संविधान में बदलाव करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से मंजूरी लेने की जरूरत को खत्म करना शामिल है। शंकरनारायणन ने कहा, 'इसका मतलब क्रिकेट प्रशासन और सुधार से जुड़े मामलों में फिर से पुराने ढर्रे पर लौट जाना है। ऐसा करने से ज्यादातर जरूरी बदलावों का अस्तित्व ही खत्म हो जाएगा।'


'मौजूदा हालात के लिए कुछ हद तक सुप्रीम कोर्ट जिम्मेदार'
शंकरनारायणन लोढ़ा कमेटी के सचिव थे, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने क्रिकेट प्रशासन में सुधार के इरादे से 2015 में नियुक्त किया था। पूर्व चीफ जस्टिस आरएम लोढ़ा इस समिति के अध्यक्ष थे, जिसमें हाई कोर्ट के पूर्व जस्टिस आरवी रविंद्रन और अशोक भान शामिल थे। शंकरनारायणन ने कहा कि अगर संशोधित संविधान में बदलावों को अपनाया जाता है तो उन्हें कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। उन्होंने कहा, 'वे यह दिखाने की कोशिश कर रहे हैं कि जब बीसीसीआई संविधान में बदलाव करेगा तो उसे सुप्रीम कोर्ट की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी।' हालांकि, शंकरनारायणन का मानना है कि मौजूदा हालात के लिए आंशिक रूप से सुप्रीम कोर्ट भी जिम्मेदार है, क्योंकि उसने सुधारों को कमजोर करने में भूमिका निभाई।


सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी ने प्रारंभिक सुधारों को  2016 में मंजूरी दी थी


शंकरनारायणन के मुताबिक, अगर संशोधन सर्वसम्मति से किए गए हैं तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। ये अहम था जब सुप्रीम कोर्ट द्वारा नियुक्त कमेटी ने प्रारंभिक सुधारों को 2016 में मंजूरी दी थी। इसके बाद पिछले साल प्रशासकों की समिति (सीओए) द्वारा तैयार और प्रस्तुत किए गए संविधान को मंजूरी दी गई। शंकर नारायणन के मुताबिक, 'वे (बीसीसीआई) संभवत: ये तर्क देगी कि देखो सुप्रीम कोर्ट ने हमें हमारे संविधान में संशोधन से नहीं रोका है। ऐसे में हम इसमें हर तरह के बदलाव और संशोधन के लिए सक्षम हैं।'